हरियाणा - संस्कृति

हरियाणा - संस्कृति

  1. बरही/नेजू- कुएं से पानी खींचने की मोटी रस्सी|
  2. दोघड- सिर पर ऊपर नीचे एक साथ दो घड़े|
  3. पनिहारन-कुएं से पानी लाने वाली|
  4. पनघट- वह सार्वजानिक कुआं जहाँ से पीने का पानी लाया जाता था|
  5. सूड़- खेत में हल चलाने से पहले की जाने वाली कटाई-छंटाई|
  6. न्याणा- गाय का दूध निकालने के पूर्व उसके पिछले पैरों को बांधने का रस्सा|
  7. नेता- हाथ से दूध बिलोने की रई को घुमाने वाला रस्सा|
  8. नांगला- रई को सीधी रखने के लिए डाले जाने वाले दो रस्से |
  9. कढावणी- हारे में दूध गर्म करने का मटका|
  10. बिलोवना/बिलोवनी- दूध बिलोने के लिए प्रयोग होने वाला मटका| घीलडी- घी डालने का मिटटी का पात्र | जमावनी- दूध जमाने का मटका |
  11. जामण- दूध ज़माने के लिए डाली जाने वाली छाछ |
  12. रई- दूध बिलोने का लकड़ी का यन्त्र|
  13. हारी- कपडे या घास से बना गोल घेरा जिस पर गर्म बर्तन रखा जाता था|
  14. हारा- गोबर के कंडे (उपले) जलाकर कुछ पकाने का स्थान |
  15. बांठ/ चाट- पकाकर पशुओं को डाली जानी वाली खाद्य सामग्री, जैसे बिनोले, ग्वार, चने आदि|
  16. गोस्से/उपले/पाथिये- गोबर के कंडे|
  17. कोठला- अनाज डालने का मिटटी का बड़ा पात्र|
  18. कोठली- अनाज डालने का मिटटी का छोटा पात्र
  19. कूप/ बूंगा- चारा डालने का सरकंडों/ घासफूस से बना ढांचा|
  20. मन्जोली- मुज़ की गठरी| मूंज- सरकंडों में से निकला गया वह हिस्सा जिससे रस्सी बनती है|
  21. मोगरी- मूंज. फसल आदि को कूटने की मोटी लकड़ी|
  22. खाट- चारपाई|
  23. प्लाण- गाडी में जोतने से पहले ऊंट की पीठ पर रखा जाने वाला एक लकड़ी का ढांचा |
  24. कजावा- ऊंट की पीठ पर रखकर सामान धोने का एक साधन, जिसे प्लाण पर रखा जाता था|
  25. राछ-  औजार |
  26. कूंची- ऊंट की सवारी करने के लिए उसके ऊपर रखा जाने वाला एक ढांचा|
  27. बींड- ऊंट को हल में जोतने के लिए प्रयोग होने वाला रस्सों का जाल |
  28. जुआ/जूडा- ऊंट अथवा बैल को हल में जोतने के लिए प्रयोग होने वाला लकड़ी का ढांचा|
  29. कुस/फाल- हल में प्रयोग होने वाला लोहे का उपकरण  |
  30. ओरना- बिजाई के काम आने वाला बांस से बना एक उपकरण |
  31. बिजंडी- बीज डालने का थैला या अन्य पात्र|
  32. हलसोतिया- बिजाई शुरू करने के दिन का उत्सव||
  33. हाली- हल चलाने वाला| पंजवाल- खेत में पानी देने वाला|
  34. पाली- पशु चराने वाला|
  35. चीड़स- चमड़े का एक पात्र जिससे कुएं से पानी निकाला जाता था|
  36. पूली- फसल की कटाई से समय कुछ मात्र के एक साथ बांधे गए पौधे |
  37. दुबका- ऊंट या किसी अन्य पशु के पैरों को बांधना ताकि वह भाग न सके|
  38. झावली- मिटटी का एक पात्र, जिसमें सामान डालते थे|
  39. झावला- दूध गर्म करने के मटके (कढ़ावनी) को ढकने का मिटटी का पात्र जिसमें भाप निकलने को छेद होते थे|
  40. मांडना- गेरू या रंगों से दीवारों पर की जाने वाली चित्रकारी|
  41. साथिये- स्वस्तिक आदि |
  42. कुंडा- मिटटी का एक पात्र जिसमें आटा गूंथा जाता था|
  43. कुलडा- मिटटी का मटके जैसा छोटा पात्र, जो पानी लस्सी आदि डालने के काम आता था|
  44. कुलड़ी- कुलडे से छोटे आकर का पात्र|
  45. सिकोरा- मिटटी का एक बर्तन|
  46. बरवा- मिट्टी का एक बर्तन |
  47. सीठना- दामाद को गीत के रूप में दी जाने वाली गालियाँ |
  48. खोड़िया- एक नृत्य |
  49. बटेऊ- दामाद
  50. लनीहार- दुल्हन को लेने आया मेहमान|
  51. बधाण- ऊंट/बैल गाडी, ट्रक्टर ट्राली या ट्रक आदि में लादे गए सामान को बांधने का रस्सा
  52. सांकल- दरवाजे की कुण्डी|
  53. चूरमा- मोटी रोटी का चूरा बनाकर उसमें घी डालकर बनाया गया व्यंजन|
  54. लापसी- आटे को भूनकर उसमें मीठा पानी मिलाकर बनाया गया गाढा व्यंजन|
  55. पांत/सीरा- आटे को भूनकर उसमें मीठा पानी मिलाकर बनाया गया पतला व्यंजन
  56. कसार/पंजीरी - आटे को भूनकर उसमें मीठा मिलकर बनाया गया सूखा पाउडर |
  57. सत्तू- भूने हुए जौ का आटा| बिजणा- हाथ से हवा करने का पंखा| पंखी- हाथ से हवा करने की घूमने वाली पंखी| टोकनी- पीतल का घड़ा|
  58. झाल/मौण- मिटटी का घड़े से बड़े आकार का बर्तन|
  59. सुराही- लम्बी गर्दन और बीच में पानी निकालने के छेड़ युक्त घड़े के आकर का मिटटी का पात्र|
  60. गिर्डी- पत्थर का गोल आकर का एक उपकरण जो गहाई के काम आता है|
  61. रहट- बैलों की मदद से कुएं से पानी निकालने का एक यन्त्र|
  62. धोरा/धाना- खेतों में पानी बहाने का नाला|
  63. सरकंडा/झूंडा/झूंड - एक प्रकार का पौधा जिस के तने और पत्ते छप्पर आदि बनाने काम में लिए जाते हैं|
  64. छाज- सरकंडे के उपरी हिस्से तुलियों से बना एक पात्र जो अनाज साफ़ करने के काम आता है|
  65. छालनी- लोहे से बना एक पात्र जो छानने के काम आता है|
  66. चाकी- पत्थर से बना आटा पीसने का यन्त्र|
  67. कीला- हाथ से चलने वाली चक्की का धुरा जिस पर ऊपरी पाट घूमता है|
  68. मानी- हाथ चक्की के ऊपरी पाट में लगने वाला लकड़ी का टुकड़ा जो कीले पर टिकता है|
  69. गरंड- हाथ चक्की का घेरा जिसमें पिसा हुआ आटा गिरता है|
  70. छिक्का- घी, दूध या रोटी रखने का रस्सी का जाला| पशुओं के मुंह पर लगने वाले जले को भी छिक्का कहते हैं|
  71. रास- ऊंट की लगाम|
  72. हाथेली- हल का वह भाग जिसे पकड़ कर हल चलाया जाता है|
  73. चाक- लकड़ी का बना वह गोल चक्का जिस पर रस्सी चढ़ा कर कुंए से पानी निकाला जाता है|
  74. नोट- मिटटी के मटके आदि बर्तन बनाने का यंत्र भी चाक कहलाता है|
  75. कहोड- ऐसी लकड़ी जो ऊपर दो हिस्सों में बंट जाती है और जिस पर चाक लगाकर कुएं से पानी निकाला जाता है|
  76. ढाणा- कुएं से चीड़स से पानी निकाल कर जिस हौद में डाला जाता है|
  77. खेल- पशुओं के पानी पीने की हौद|
  78. गूण- कुएं से पानी खींचते समय ऊंट या बैल जिस गढ़े में जाते हैं|
  79. मंडासा- कुएं के उपरी हिस्से पर बनायीं गयी दीवार|
  80. बिटोड़ा- गोसे/ उपलों का व्यवस्थित ढेर|
  81. पराली- चावल के पोधों का भूसा|
  82. कड़बी- बाजरे/ज्वार के पोधों का भूसा|
  83. तूड़ी- गेंहूँ/जौ के पोधों का भूसा|
  84. नलाव/नलाई/निनान- फसल में उगी खरपतवार को निकलना|